यादें मरती नहीं हैं
तुम्हारी यादों के साथ- साथ
चलता है झील का किनारा,
जहाँ किनारे खड़े
पेड़ों के साए में
चले थे हम-तुम
साथ-साथ,
झील के दूसरे छोर तक।
तुम्हें याद है या नहीं
तुम्हीं ने आगे बढ़कर
मेरे हाथों में अपना हाथ
डाल दिया था
और कहा था- ‘‘ ये पक्का है,
और इस जनम में तो
छूटने से रहा।’’
बस उसी पल से
हवा में फैल गई थी
तुम्हारे प्यार की खुशबू
और महकाती रही
मेरे मन-प्राणों को
तब से अब तक
और मैंने भी तुम्हें
अपनी रुह में टाँक लिया था।
हैरत में हूँ मैं
कि झटक दिया है तुमने
अब वही हाथ,
जबकि इसी जनम के
सात बरस भी पूरे नहीं हो पाए।
सतरंगी सपनों का ‘स्पेक्ट्रम’
घुमा दिया तुमने,
और सब कुछ अचानक
सफेद हो गया।
कोई रंग नहीं जीवन में अब
इस सफेद रंग के सिवा।
हवाओं की खुशबू
कहीं खो गई।
खींच दी तुमने लकीर
अचानक
मेरे और अपने बीच,
और कह दिया-
‘‘इस पार आने से
तुम पत्थर के हो जाओगे।’’
मुझे लगता है कि
तुम ही बदल गईं
किसी पत्थर में
किसी तिलस्म ने
छीन ली मेरी राजकुमारी।
मेरी नींदें
भटकती हैं आँखों से दूर,
यहाँ अब रतजगे रहते हैं
पूछते हैं जो मुझसे-
‘‘क्या हुआ
हाथों में दिए गए हाथ का?
क्या यह जन्म ख़त्म हो चुका है?’’
‘दलपत सागर’ -वह झील,
क्यूँ बदल गई है
पोखर में?
सूख रही है झील,
मर रहा है पानी,
पर
यादें हैं कि मरती नहीं हैं।
- दिनेश गौतम
27. 01.2015 फतेहसागर झील, उदयपुर।
तुम्हारी यादों के साथ- साथ
चलता है झील का किनारा,
जहाँ किनारे खड़े
पेड़ों के साए में
चले थे हम-तुम
साथ-साथ,
झील के दूसरे छोर तक।
तुम्हें याद है या नहीं
तुम्हीं ने आगे बढ़कर
मेरे हाथों में अपना हाथ
डाल दिया था
और कहा था- ‘‘ ये पक्का है,
और इस जनम में तो
छूटने से रहा।’’
बस उसी पल से
हवा में फैल गई थी
तुम्हारे प्यार की खुशबू
और महकाती रही
मेरे मन-प्राणों को
तब से अब तक
और मैंने भी तुम्हें
अपनी रुह में टाँक लिया था।
हैरत में हूँ मैं
कि झटक दिया है तुमने
अब वही हाथ,
जबकि इसी जनम के
सात बरस भी पूरे नहीं हो पाए।
सतरंगी सपनों का ‘स्पेक्ट्रम’
घुमा दिया तुमने,
और सब कुछ अचानक
सफेद हो गया।
कोई रंग नहीं जीवन में अब
इस सफेद रंग के सिवा।
हवाओं की खुशबू
कहीं खो गई।
खींच दी तुमने लकीर
अचानक
मेरे और अपने बीच,
और कह दिया-
‘‘इस पार आने से
तुम पत्थर के हो जाओगे।’’
मुझे लगता है कि
तुम ही बदल गईं
किसी पत्थर में
किसी तिलस्म ने
छीन ली मेरी राजकुमारी।
मेरी नींदें
भटकती हैं आँखों से दूर,
यहाँ अब रतजगे रहते हैं
पूछते हैं जो मुझसे-
‘‘क्या हुआ
हाथों में दिए गए हाथ का?
क्या यह जन्म ख़त्म हो चुका है?’’
‘दलपत सागर’ -वह झील,
क्यूँ बदल गई है
पोखर में?
सूख रही है झील,
मर रहा है पानी,
पर
यादें हैं कि मरती नहीं हैं।
- दिनेश गौतम
27. 01.2015 फतेहसागर झील, उदयपुर।