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Tuesday 21 February 2012

उनकी क्या है बात....

उनकी क्या है बात, वे स्वर्णिम शिखर बनकर रहेंगे,
हम तो हैं बेबस बेचारे, नींव के पत्थर रहेंगे।

उनकी आँखें की चमक हीरों से बढ़ती जाएगी,
और अपने ये नयन तो, अश्रुओं से तर रहेंगे।

तितलियों से बोल दो, इस बाग में न यूँ फिरें,
एक दिन वरना उन्हीं के, कुछ नुचे से पर रहेंगे।

लाख रोकें हम शलभ को दीप की लौ पर न जा,
प्यार पागलपन है ऐसा, वे तो बस जलकर रहेंगे।

नफरतों की वो इमारत अब ढहा दी जाएगी,
इस नगर में तो हमारे, प्यार के ही घर रहेंगे।

देखना तुम जुल्म के आगे झुकी सब गर्दनें,
एक मेरा, इक तुम्हारा दो ही ऊँचे सर रहेंगे।

ये अजब है बात, जिनको चाहिए न हों वहाँ,
वे ही लेकिन उस जगह पर, देखना अक्सर रहेंगे।

खो चुके हैं जो चमक, वे दिख रहे बाज़ार में,
पर असल में हैं जो मोती, सीप के अंदर रहेंगे।
- दिनेश गौतम

5 comments:

S.N SHUKLA said...

सुन्दर सृजन, सुन्दर भावाभिव्यक्ति, बधाई.

कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर पधार कर अपनी अमूल्य राय प्रदान करें, आभारी होऊंगा.

दीपिका रानी said...

सुंदर ग़ज़ल। नफरतों की वो इमारत अब ढहा दी जाएगी,
इस नगर में तो हमारे, प्यार के ही घर रहेंगे.. बहुत खूब

दीपिका रानी said...

वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें तो टिप्पणी देने वालों को सुविधा रहेगी

महेन्‍द्र वर्मा said...

तितलियों से बोल दो, इस बाग में न यूँ फिरें,
एक दिन वरना उन्हीं के, कुछ नुचे से पर रहेंगे।

गज़ब की ग़ज़ल है !

राकेश रोहित said...

गजल, गीत और दोहे सभी विधा में आपकी अभिव्यक्ति भावपूर्ण है और दिल को छूती है. आपने बहुत सुन्दर कहा है-
"देखना तुम जुल्म के आगे झुकी सब गर्दनें,
एक मेरा, इक तुम्हारा दो ही ऊँचे सर रहेंगे।"
एक साथ विरोध और प्यार/ साझेदारी की उपस्थिति से बात और मुखर हो उठती है. जीवन में यह विश्वास कवियों के मन में बना रहे इसी उम्मीद के साथ - राकेश रोहित